उपद्रवी से सभ्य केसे बन गया मेरे गांव का युवा।

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आज हैरान हूं अचंभित हूं और हूं गर्वित भी
कि केसे मेरे गांव का युवा उपद्रवी से सभ्य बन गया

साक्षी हूं मैं उन पलों का,जब पर्याय बन चुके थे तुम हुड़दंग के
जब भी उस दौर को याद करता हूं मानों व एक बुरा सपना था

आज हैरान हूं अचंभित हूं और गर्वित भी हूं
कि केसे मेरे गांव का युवा उपद्रवी से सभ्य बन गया।

कैसे भूल जाऊं तेरे बचपन के उन गुनाहों को
जब गांव में शरारतों का जैसे तुमने आतंक मचाया था।

समय के साथ परिवर्तन का तुमने बखूवी अंजाम दिया
गांव के इस युवा ने शिक्षक बनकर गांव को भी गर्वित किया।

आज हैरान हूं अचंभित और गर्वित भी हूं
कि केसे मेरे गांव का युवा उपद्रवी से सभ्य बन गया।

समय था जब तुम्हारा उदहारण उपद्रवी के लिए प्रसिद्ध था
इच्छाशक्ति थी कि तुमने इस धारणा को भी मिथ्या किया।

शाय़द वह लोग भी हैरान होंगे, और होंगे गर्वित भी
कि केसे एक मेरे गांव का युवा उपद्रवी से सभ्य बन गया।

बचपन में हुड़दंग और नटखट का मानों दौर शुरू किया था
परन्तु समय और संस्कारो से तुमने मानों उसे भी बदल दिया।

आज हैरान हूं अचंभित हूं और हूं गर्वित भी
कि केसे मेरे गांव का युवा उपद्रवी से सभ्य बन गया।

उस दौर में मानों तुम्हें अनेकों नामों से जाना जाता रहा
वर्तमान में तुमने शाय़द अपने नाम को सार्थक भी सिद्ध किया

इतिहास गवाह है कि जिससे शाय़द समाज ने उम्मीद छोडी
उसी हुड़दंग और शरारती पं रजनीश शर्मा जैसों ने इतिहास रचे

आज हैरान हूं अचंभित हूं और हूं गर्वित भी,
कि केसे मेरे गांव का युवा उपद्रवी से सभ्य बन गया।

उस दौर को देखकर शाय़द माता पिता भी विचलित हुए होंगे
परन्तु मेहनत और इच्छाशक्ति से मानों अब गर्वित भी हुए होंगे
*स्वतन्त्र लेखक- हेमराज राणा सिरमौर*