दिन-ब-दिन स्कूली शिक्षा महंगी होती जा रही है। इसका मुख्य कारण निजी स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर की पुस्तकें लगवाना, महंगी वर्दी और फीस बढ़ोतरी है। सभी स्कूलों ने एडमिशन फीस और मंथली फीस में लगभग 20% तक की बढ़ोतरी कर दी है निजी स्कूलों की इस मनमानी से हर कोई वाकिफ है लेकिन बच्चों के भविष्य को देखते हुए कोई भी अभिभावक कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वहीं, नियमों से बंधा प्रशासन भी कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।
अभिभावकों का कहना है कि इस लूट से बचने के लिए लोगों को आगे आना होगा ताकि यूनियन बनाकर अपनी बात सरकार के समक्ष रखी सके। अभिभावक ने बताया कि स्कूल की ओर से बताई गई पुस्तकें खास दुकानो के अलावा शहर की किसी दुकान में नहीं मिलतीं। बच्चों के कॅरिअर की बात है, इसलिए स्कूल को कुछ कह नहीं सकते। अकेले आवाज उठाना मुमकिन नहीं है।
उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में आठवीं तक मुफ्त किताबें मिलती हैं और अन्य पुस्तकें कम रेट पर उपलब्ध होती हैं। हमसे सरकारी रेट के बजाय चाहे 15 प्रतिशत अतिरिक्त पैसे ले लें लेकिन कम से कम निश्चित दाम पर तो यह मिलें। बच्चे की एक पुस्तक ही 300-400 रुपये की पड़ती है। बच्चे के साथ शिक्षक भेदभाव न करें और उसका भविष्य सुरक्षित रहे। इसलिए कोई अभिभावक स्कूल का विरोध नहीं करते। अभिभावक ने कहा कि स्कूलों द्वारा पुस्तकों और वर्दी पर चल रही लूट का सभी को पता है लेकिन इस पर कभी कार्रवाई नहीं होती। प्रशासन स्कूलों पर सख्ती बरते तो कुछ हो सकता है।
निजी स्कूल हैं गैर लाभकारी संस्थाएं :
सीबीएसई द्वारा अधिसूचना के अनुसार निजी स्कूल गैर लाभकारी संस्थाएं हैं। सोसाइटी, ट्रस्ट या कंपनी का उद्देश्य स्कूलों को गैर लाभकारी तरीके से चलाना होना चाहिए। स्कूल को केवल इतनी फीस लेनी चाहिए, जितना उनके खर्चे निकालने के लिए पूरी हो सके। सीबीएसई की ओर से जारी दिशानिर्देश के अनुसार स्कूल अभिभावक को किसी भी बुकसेलर या खुद से पुस्तकें और वर्दी लेने के लिए नहीं कह सकते। ऐसा करने पर स्कूल पर कार्रवाई की जा सकती है। साथ ही स्कूलों को हर साल फीस बढ़ाने की सीमा भी तय की गई है लेकिन इसके बावजूद निजी स्कूल निर्देशों का अंदेखा कर शिक्षा का व्यापार कर रहे हैं।
कोट्स
कभी पुस्तकें तो कभी वर्दी और फीस के बहाने निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं और शिक्षा के अधिकार में रुकावट पैदा कर रहे हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अभिभावक बिना कहे स्कूलों की बात मान रहे हैं लेकिन निजी स्कूल उनकी इसी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। प्रशासन को इन स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। अगर पुस्तकें, वर्दी इतनी महंगी आ रही हैं तो उनपर कार्रवाई करें कि पुस्तकों पर दिए दाम उचित है या नहीं।
बाजार में पुस्तकें, वर्दी को लेकर स्कूलों ने बनाई मोनोपली :
महंगी पुस्तकें, वर्दी और अत्यधिक फीस वसूलना निजी स्कूलों की आदत बन गई है। निजी स्कूल की पुस्तकें ट्राइसिटी में निश्चित एक दुकान पर मिल रही हैं। बाजार में बुकसेलर की मोनोपली बनी हुई है और अभिभावक के पास पुस्तकें और वर्दी लेने के लिए एक दुकान के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। बुकसेलर, निजी प्रकाशक और निजी स्कूलों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
जब इस विषय में प्रशासन से पता करने की कोशिश की गई तो पता चला कि बच्चों की पुस्तकें निर्धारित करने की शक्ति निजी स्कूलों के पास है। हम उन्हें सीबीएसई की पुस्तकें लेने के लिए कह सकते हैं लेकिन अंतिम निर्णय निजी स्कूल का है। विभाग के पास पुस्तकों को लेकर कोई शिकायत आई हो या कार्रवाई हुई हो इसकी जानकारी नहीं है।