प्राचीन धरोहर और अटूट आस्था का केन्द्र माना जाता है सिरमौर का शिव मंदिर सहस्त्रधारा।

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जैसा कि हम सभी को मालूम है कि देव भूमि हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं का प्रदेश माना जाता है जिस प्रदेश में अनेकों क्षेत्रों में देवी देवताओं की शक्तियो और आस्था का इतिहास वेद ग्रन्थों के माध्यम से युगों युगों से देखने एवं सुनने को मिलता है,इसी परिप्रेक्ष्य में आज हम आप सभी तक जिला सिरमौर के पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत एक ऐसे अद्भुत और अलौकिक शिव मन्दिर का जिक्र करना चाहेंगे जिस मन्दिर का इतिहास क्षेत्र के बुद्धिजीवियों और धार्मिक विद्वानों द्वारा पांडव के अज्ञातवास से जुड़ा हुआ माना जाता है तो वहीं जिस अलौकिक शिव मन्दिर के इतिहास से वर्तमान युवा पीढ़ी को भी कहीं न कहीं परिचित और पुण्य प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, जिस मन्दिर को शिव मन्दिर सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाता है, तो वहीं जिस अद्भुत और अलौकिक मन्दिर जाने का सौभाग्य हाल ही के महाशिवरात्रि में हमें भी प्राप्त हुआ,जिस धार्मिक स्थल पर प्राचीन सुन्दर एवं ऐतिहासिक शिव मंदिर बना हुआ है तो वहीं साथ ही माता का भी मन्दिर बना हुआ है साथ ही सहस्त्रधारा के नाम से अनेकों प्रकार की जलधाराएं बहती नज़र आती है जहां पर एक तरफ़ पुरूष श्रद्धालुओं के लिए जलधारा में अमृत स्नान किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर महिला श्रद्धालुओं के लिए अलग से गुफा के निकट अमृत स्नान के लिए व्यवस्था और स्नान किया जाता है,जिस गुफ़ा के बारे में कहां जाता है कि पांडव ने सबसे अधिक अज्ञातवास का समय इसी धार्मिक स्थल पर व्यतीत किया था, तो वहीं धार्मिक विद्वानों द्वारा कहा जाता है कि इस प्राचीन गुफा का रास्ता हरिद्वार तक पहुंचता है जिसका निर्माण पांडव ने किया था और इस गुफा से होकर पांडव ने हरिद्वार के लिए प्रस्थान किया था जिसको देखकर हर व्यक्ति अनुमान लगा सकता है कि इस धार्मिक स्थल पर युगों पूर्व अवश्य ऐसे ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी यह क्षेत्र रहा होगा,जिस धार्मिक स्थल के निकटस्थ पतित पावन मां यमुना नदी का भी संगम देखने को मिलता है जिस शिव मन्दिर सहस्त्रधारा के निचले हिस्से में बह रही टौंस नदी के साथ साथ कुछ ही दूरी पर यमुना नदी का संगम माना जाता है जिस धार्मिक स्थल पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाकर अपने आप को कृतार्थ होते हैं, सहस्त्रधारा के साथ ही जिला सिरमौर ही नहीं वल्कि हिमाचल और उत्तराखंड के प्रसिद्ध संत महात्मा स्व ब्रहम्लिन श्री श्री 1008 श्री पूर्णानंद जी महाराज(गुरासा) धौलीधाग वाले महात्मा जी का भी मन्दिर बना हुआ है जिस धार्मिक स्थल पर अनेकों वर्षों तक उन्होंने तप साधना, और श्रद्धालुओं को ज्ञान गंगा और सनातन धर्म से समय-समय पर कृतार्थ किया और वर्तमान में भी इनके हजारों शिष्य एवं श्रद्धालु इनके विभिन्न मंदिरों में पहुंचकर अपनी आस्था और विश्वास का परिचय देते नज़र आते हैं, सहस्त्रधारा मन्दिर की पांवटा साहिब से दूरी मात्र पच्चीस किलोमीटर की मानी जाती है जिस धार्मिक स्थल तक श्रद्धालुओं के लिए सड़क सुविधा उपलब्ध है,तो वहीं हर वर्ष महाशिवरात्रि एवं साल भर पर इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल सहस्त्रधारा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र स्नान, प्राचीन गुफा और शिव मन्दिर के दर्शनों से अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं और यह भी कहा जाता है कि इस धार्मिक स्थल पर व्यक्ति के सभी मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और बार बार इस धार्मिक स्थल पर आने का मन होता है, तो वहीं इस धार्मिक स्थल पर एक विशाल वटवृक्ष का पेड़ मौजूद हैं जो इस धार्मिक स्थल को और अधिक आस्तिक और विश्वसनीय बना देता है जिस प्रकार इस स्थल को सहस्त्रधारा का नाम दिया गया है तो जिस प्रकार वटवृक्ष की विशाल जड़ें,टहनीया, पत्तों का विशाल आकार मन्दिर के समस्त क्षेत्र में देखने को मिलता है जिस वटवृक्ष की जड़ों से सैकड़ों जल धाराएं बहती है इसीलिए कदाचित इस क्षेत्र को सहस्त्रधारा के नाम से भी जाना जाता है तो वहीं ऐसी भी मान्यता मानीं जातीं हैं कि जब भगवान परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु का बध किया तो उसके रक्तचाप से जिस जिस क्षेत्र में रकतधाराए गिरि उन क्षेत्रों में से एक यह सहस्त्रधारा धार्मिक स्थल भी विख्यात हुआ,तो वहीं इस क्षेत्र में हनुमान जी की सुन्दर एवं विशाल मूर्ति भी स्थापित की गई है,इस प्रकार आप सभी को भी इस अलौकिक और लोकप्रिय धार्मिक स्थल पर जरूर आना चाहिए और पुण्य की प्राप्ति करनी चाहिए अन्यथा जिस प्रकार आज के व्यस्ततम और भागमभाग के जीवन में हर व्यक्ति अपने आप से जूझता और खोया खोया सा नज़र आता है उस परिप्रेक्ष्य में हमे शाय़द जीवन में असीम शांति और मोह माया और रिश्तों नातों से हटकर ऐसे पवित्र और पूजनीय धार्मिक स्थलों पर जरूर जानें का प्रयास करें जिन विभिन्न धार्मिक क्षेत्रों में पहुंचने पर अक्सर मोह माया से दूर शान्ति और परम् पिता परमेश्वर के शरण में जाने का माध्यम ऐसे धार्मिक स्थलों से होकर ही कदाचित प्राप्त हो सकता है, ऐसा विश्वास और उम्मीद करते हैं,जिस पर आज का युवा धार्मिक आस्था और मान्यताओं से कहीं ना कहीं दूर होता जा रहा है और आधुनिकता की और अग्रसर हो रहा है जो कि बहुत ही चिंताजनक और सनातन धर्म के लिए कहीं ना कहीं गंभीर स्थिति को दर्शाता है जो सनातन धर्म किसी समय में विश्व गुरु हुआ करता था। जिस ख्याति को हम सभी युवाओं और सनातनी प्रेमियों को पुनः स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।
*स्वतन्त्र लेखक-हेमराज राणा सिरमौर*