मंदिर कटासन देवी का इतिहास

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जय माँ कटासन देवी जी

कटासन देवी का मंदिर सिरमौर की राजधानी नाहन से 11 मील दूर नाहन पाँवटा मार्ग पर स्थित है। यहाँ पहले ग्रामीणों द्वारा एक छोटा मंदिर बनाया गया था जिसमें माता की पूजा एक पिण्डी के रूप में की जाती थी। इस मंदिर का महत्त्व तब बढ़ा, जब खूंखार रोहिला सरदार गुलाम कादिर ने सिरमौर पर हमला किया। यह वही व्यक्ति था जिसने हिन्दुस्तान के बादशाह शाहआलम की निर्दयता से आँखें निकाल दी थी। दिल्ली के लालकिले पर कब्जा कर लिया था तथा बेगमों और शहजादियों के साथ अभद्र व्यवहार किया था । इतिहासकार जी० आर० विलियम ने अपनी पुस्तक “मेमोयर ऑफ देहरादून” में लिखा है “शैतान गुलाम कादिर ने अपने हिन्दू सहयोगी, राजा मुनियार सिंह के साथ सन् 1786 ई. के मध्य हरिद्वार पर हमला किया और खून की नदियाँ बहा दी। तत्पश्चात उसने देहरादून को तहस-नहस किया । गुरूद्वारा गुरू राम राय में गऊ हत्या की और आग लगा दी। वह नाहन (सिरमौर) की और बढ़ा। उसका सामना बहादुरी से सिरमौर वासियों ने किया । गुलाम कादिर ने अपना डेरा कटासन और टोकियों के बीच में स्थापित किया। उसकी विशाल सेना ने गो-वध किये और सब कुँओं तथा बावड़ियों में पशुओं के कंकाल डाल दिए “उस समय सिरमौर में राजा जगत प्रकाश का शासन था । वह अभी नाबालिग थे, इसलिए उनकी माता ने एक बहादुर युवक, मलौता (अब उत्तराखण्ड) निवासी नोत राम नेगी को बुलाया। राजा जगत प्रकाश और नौत राम नेगी, गुलाम कादिर का मुकाबला करने अपनी सेना लेकर चल पड़े। कटासन देवी पहुँच कर राजा जगत प्रकाश ने देवी की आराधना की और शत्रु पर विजय पाने की कामना की। माता की कृपा से सिरमौर की आम जनता में भी जोश जाग गया। केवल पुरूष ही नहीं सिरमौर की वीराँगनाएँ भी हाथ में कुल्हाड़ी, दराँत आदि उठाकर शत्रु का सामना करने निकल पड़े । तत्पश्चात बड़ाबन और टोकियों के मध्य एक भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें गुलाम कादिर की विशाल सेना सिरमौर की सेना से हार गयी और भाग खड़ी हुई। इस युद्ध में वीर नोत राम नेगी के अलावा कई सिरमौरवासियों ने अपने प्राण न्यौछावर कर वीरगति प्राप्त की। राजा ने युद्ध जीतने के पश्चात् यहाँ एक मंदिर की स्थापना की जो कुछ समय बाद किन्हीं कारणों से क्षतिग्रस्त हो गया था । इस मंदिर का पुनः जीर्णोधार सिरमौर के अन्य राजाओं ने किया। इस वृतान्त का जिक्र अंग्रेज इतिहासकार जार्ज फोरेस्टर के इलावा अन्य इतिहासकारों ने भी किया है तथा लोकगीत “नोत राम की गाथा” में भी इसका उल्लेख है। कुछ वर्ष पहले तक जेठे रविवार को जंगली शेर इस मंदिर में उपस्थिति देता था, जिसे कई लोगों ने देखा है। आज भी भूतपूर्व सिरमौर रियासत के राजवंश के वंशज इस मंदिर में शीश नवाते हैं और माता का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।