जिन बहादुर सैनिकों के कारण किसी भी देश की सरहदें और देश सुरक्षित रहते हैं उन सैनिकों और शहीद सैनिकों के परिवार के प्रति समाज का क्या नैतिक कर्तव्य होना चाहिए आज हम आप सभी के समक्ष लेख के माध्यम से चर्चा एवं आत्मचिंतन करने का प्रयास करेंगे,जो महत्वपूर्ण विषय कदाचित हम सभी देशवासियों के लिए जानना और अनुभव करना अतिआवश्यक माना जाता है,जिन बहादुर सैनिकों के कारण हम अपने घरों में अमन-चैन और शान्ति के साथ जीवन ज्ञापन करते हैं क्योंकि हमारे देश के बहादुर सैनिक देश की हिफाजत करने के लिए दिन रात देश की सीमाओं की इफाजत करते हैं और जरूरत पड़ने पर देशहित में अपने प्राणों की आहूति देने से भी गुरेज नहीं करते हैं, परन्तु आधुनिकता के इस दौर में जहां हम सभी अपने परिवार को व्यक्तिगत जीवन तक कहीं ना कहीं सिमित होते जा रहे हैं जो बहुत ही दुखद और चिन्ता का विषय है, परन्तु जिस प्रकार समय-समय पर देश के अलग-अलग क्षेत्रों के बहादुर सैनिक देश के लिए प्राणों की आहूति देते हैं और हम केवल उनकी अन्त्येष्टि तक उनके बहादुरी को सलाम और याद करने का प्रयास करते नज़र आते हैं, परन्तु अगर शहीद के परिवारों की उस पीड़ा को भी समझने और आत्मचिंतन करने का प्रयास किया जाएं जब शहीद के परिजनों को समय-समय पर विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें कहीं पर मात्र माता-पिता अकेले जीवन बसर करने के लिए मजबूर हैं तो कहीं पर पत्नि बच्चों को अकेले जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ता है, परन्तु असली अहसास शहीद का परिवार ही कर सकता है कि वह किन किन दुखों एवं समस्याओं से जूझ रहा होता है, परन्तु हम सभी युवाओं और समाज का भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम अपने क्षेत्र समाज के शहीद परिजनों के किसी ना किसी रूप से दुःख सुख के सहभागी बनें ताकि शहीद के परिजन अपने किसी एकलौते बेटे, पति, पिता, भाई खोने का कुछ तो दुःख कम हो सकें, तो वहीं दूसरी ओर हमारे देश के युवा देश की रक्षा करने हेतु देशभक्ति की भावना और सैनिकों के रूप में हमेशा तत्पर नज़र आएं,इस प्रकार समाज का कर्तव्य बनता है कि शहीद के परिजनों के प्रति हमेशा आदर सम्मान और समय-समय पर किसी न किसी रूप से दुःख सुख के सहभागी बनने का प्रयास करें ऐसी उम्मीद और विश्वास करते हैं।
*स्वतन्त्र लेखक-हेमराज राणा सिरमौर*