हिमाचल हाईकोर्ट ने केंद्र और हिमाचल सरकार से पूछा हाटी को किस आधार पर दिया जनजाति आरक्षण,जब यह जाति ही नही है तो आरक्षण कैसा
हाल ही में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान में संशोधन करके ट्रांसगिरी के हाटी को जनजाति आरक्षण दिया है। वास्तव में ट्रांसगिरी के राजस्व रिकॉर्ड में हाटी कोई जाति नही है। कोर्ट ने पूछा है जब यह कोई जाति ही नही तो आरक्षण केसे दिया गया।
हिमाचल हाईकोर्ट ने केंद्र और हिमाचल सरकार से पूछा हाटी को किस आधार पर दिया जनजाति आरक्षण,जब यह जाति ही नही है तो आरक्षण कैसाहिमाचल हाईकोर्ट
ट्रांसगिरी क्षेत्र के हाटी समुदाय को दिए जनजाति आरक्षण कानून को हाई कोर्ट में फिर से चुनौत दी गई है। इस मामले में 1 नवंबर को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र कि मोदी सरकार और हिमाचल की कांग्रेस सरकार को नोटिस जारी किया है।
कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से पूछा है कि हाटी को आरक्षण किस आधार पर दिया गया है। केंद्र को 18 नवंबर से पहले इस मामले मे जबाब देने को कहा गया है।
हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति अधिकार संरक्षण समिति और गुजर समुदाय द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने वोट बैंक के खातिर ट्रांसगिरी के कथित हाटी समुदाय को जनजाति आरक्षण दिया है जिसमे सिर्फ राजपूत और ब्राह्मण शामिल है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से गुहार लगाई है कि इस क्षेत्र में हाटी नाम कि कोई जाति नही है। जिनको हाटी कहा जा रहा है,वास्तव में वो राजपूत ब्राह्मण और उच्च जाति के लोग है। जिनमें जनजाति जैसे कोई लक्षण नही है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अपील की है की इस क्षेत्र का राजस्व रिकॉर्ड मंगवाया जाए और फिर से जांच की जाए ताकि हकीकत सामने आ सके। याचिकाकर्ता ने कहा है यह क्षेत्र राजनीतिक भौगोलिक सामाजिक और आर्थिक रूप से बहुत संपन्न है। जहां पर सड़को का जाल बिछा है और शिक्षण संस्थान और अन्य सुविधाओं का अंबार लगा है।
दोनो समुदाय ने केंद्र की मोदी सरकार पर वोट बैंक के खातिर संविधान से छेड़छाड़ कर राजपूतो और ब्राह्मण को आरक्षण दिए जाने का आरोप लगाया है, और कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।
गौर हो अगस्त महिने में केंद्र की मोदी सरकार ने संविधान में संशोधन करके ट्रांसगिरी के हाटी समुदाय को जनजाति दर्जा दिया है।
इस समुदाय मे करीब 14 उपजातियां शामिल है। जिनमें 10 उपजातियां पहले से ही आरक्षित है। जबकि बाकि जो जातियां है उनमें खुश कनैत राजपूत और भाट ब्राह्मण शामिल है।
दलित और गुजर समुदाय इस पर एतराज जता रहे है। उनका कहना है कि ब्राह्मण और राजपूत संपन्न जातिया है जिनको आरक्षण देने का संविधान मे कोई प्रावधान नहीं है।
हाटी समुदाय कई सालो से साथ लगते जौनसार बावर की तर्ज पर जनजाति आरक्षण कि मांग कर रहा है। उनका कहना है कि उनके रिती रिवाज जौनसार बावर जैसे है,जबकि जौनसार जनजाति है और उनको यह आरक्षण नहीं दिया गया है।
इस क्षेत्र के लोगो की मांग पर पूर्व में रही केंद्र सरकारो द्वारा जो भी धरातल पर सर्वे करवाए गए उसमें यहां पर जनजाति नहीं पाई गई थी। न जनजाति जैसे लक्षण पाए गए थे।
जिस आधार पर यह मांग बार बार रिजैक्ट होती आई थी। साल 1995,2006 और 2017 में केंद्र की मोदी सरकार ने भी इस क्षेत्र मे कोई जनजाति नहीं होने के कारण इस मांग को रिजैक्ट कर दिया था।
लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले हिमाचल की भाजपा सरकार ने केंद्र पर दबाव बनाकर इस क्षेत्र मे जनजाति होने की बात कही जिसके बाद अचानक यहां जनजाति पैदा हो गये।
इस आरक्षण के खिलाफ इस क्षेत्र में रह रहे अनुसूचित जाति के लोगों ने केंद्र और हिमाचल सरकार कै खिलाफ आंदोलन शुरू किया जिससे घबराई केंद्र सरकार ने दलितों को इस समुदाय से बाहर रखने की बात कही थी। चूंकि यह जातियां पहले से ही समूचे हिमाचल मे आरक्षित है।
जिसके बाद दलितों में शामिल 10 जातियां इस समुदाय से बाहर हो गई। अब इस समुदाय में सिर्फ खश कनैत राजपूत और भाट ब्राह्मण रह गये हैं। भाट भी हिमाचल मे ओबीसी मै शामिल है।
दलितों और गुजर समुदाय ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा है कि ट्रांसगिरी मे हाटी कोई जाति और समुदाय नहीं है। केंद्र जिनको कथित हाटी बता रहा है वो राजपूत और ब्राह्मण है,जिनका राजस्व रिकॉर्ड में प्रमाण है। चूंकि जाति का मूल आधार राजस्व रिकॉर्ड माना जाता है। जिसमें हाटी कोई जाति दर्ज नहीं है।
उन्होंने प्रदेश सरकार से आरटीआई के माध्यम से इसके प्रमाण मांगे है जिसमे कहा गया है कि राजस्व में हाटी जाति और समुदाय का कोई उल्लेख नही है।
इसी को आधार बनाकर याचिकाकर्ता ने कोर्ट से गुहार लगाई है कि जब हाटी कोई जाति और समुदाय नहीं है फिर आरक्षण किस आधार पर दिया गया है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार और हिमाचल सरकार को नोटिस जारी कर 18 नवंबर तक अपना जबाब देने को कहा है।
बताते चलें ट्रांसगिरी क्षेत्र मे रहने वाली कुछ स्वर्ण जातियां खुद को हाटी(जनजाति) बताते है। उनका कहना है कि जब सड़कें नहीं थी तब उनके पूर्वज पैदल चलकर हाट(बाजार) जाते थे जिसके चलते वह हाटी कहलाए।
जबकि दलित और गुजर समुदाय का कहना है कि बाजार जाने से कोई जनजाति नही हो जाता। सड़को कै अभाव में जो लोग पैदल चले फिर तो वो सभी जनजाति बन जाऐगे, उसमें जनजाति जैसे लक्षण होना जरूरी है।
दलितों ने कोर्ट से कहा है जिनको मोदी सरकार जनजाति आरक्षण दे रही है वास्तव में वह राजपूत और ब्राह्मण है जो दलितों के साथ जातिय दुर्व्यवहार करते है।
उनके हाथ का बना खाना नहीं खाते, उनको मंदिर नही जाने देते। शादी विवाह में उनको अलग बिठाकर खाना खिलाया जाता है। जिंदा तो कहां मरने कै बाद शमशान घाट पर उनका मुर्दा तक नही जलाने देते।
जबकि जनजाति समुदाय में कोई जातपात नहीं होती। वह एक समुदाय होता है। जबकि ट्रांसगिरी जातपात कै आधार पर बंटा हुआ है।
यहां राजस्व रिकॉर्ड में 14 जातियां दर्ज है। ऐसे में यह संविधान का उलंघन नही तो क्या है।