9वीं बार मौ##त की घाटी लांघेंगे सूरत राम -#BHUNDA #MAHAYAGYA
शिमला: इस समय पूरे देश में महाकुंभ की चर्चाएं हैं. इस महाकुंभ में 50 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है. वहीं, #himachalpradesh हिमाचल में भी एक महायज्ञ का आयोजन हो रहा है. प्रयागराज में 12 साल बाद महाकुंभ पड़ रहा है. वहीं, हिमाचल में 39 साल बाद एक ऐसे महायज्ञ का आयोजन हो रहा, जिसमें पांच लाख लोग हिस्सा लेंगे. इस महायज्ञ की तैयारी तीन साल से चल रही है. अनुमान है कि इस यज्ञ में 100 करोड़ का बजट होगा. इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि इस यज्ञ में एक व्यक्ति 9वीं बार मौ*त की घाटी को पार करेगा. ये महायज्ञ भुंडा के नाम से चर्चित है. ऊपरी शिमला की स्पैल वैली में देवता बकरालू महाराज के पवित्र स्थल पर इसका आयोजन होगा. आइए जानते हैं क्या है ये महायज्ञ.
भुंडा यज्ञ से हिमाचल के लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी है. रोहड़ू की #स्पैल वैली में करीब 39 साल के बाद भुंडा महायज्ञ का आयोजन होगा. एप्पल वैली के नाम से मशहूर स्पैल वैली में देवता महाराज बकरालू के निवास स्थान दलगांव में ये भुंडा महायज्ञ होगा. इससे पहले साल 1985 में इसका आयोजन हुआ था. ये आयोजन #हिमाचल की समृद्ध विरासत और परंपराओं को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है. जनवरी के पहले सप्ताह में होने वाला ये महायज्ञ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा. #रोहड़ू और #रामपुर क्षेत्र के करीब पांच लाख लोग तीन दशकों के बाद इस #महायज्ञ में शामिल होंगे. भुंडा महायज्ञ के लिए पांच बावड़ियों का पवित्र जल बुधवार को देवता बकरालू के मंदिर में पहुंच गया है.
नौ गांव करेंगे भुंडा महायज्ञ की मेजाबानी
सपैल वैली से नौ गांवों दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनाला के ग्रामीणों ने अपने घरों में इस महायज्ञ की मेजबानी के लिए पूरी तैयारी कर ली है. अपने-अपने घरों में मेजबानी की पूरी तैयारी कर चुके हैं. ग्रामीणों ने दूर-दूर के रिश्तेदारों को बीते एक महीने से निमंत्रण बांटने शुरू कर दिए थे. विधायक मोहन लाल ब्राक्टा भी मंदिर में पहुंच कर इसकी तैयारियों का जायजा ले चुके हैं. इस महायज्ञ में तीन स्थानीय देवता और तीन परशुराम शामिल होंगे.
2 जनवरी से शुरू होंगे सार्वजनिक अनुष्ठान
2 जनवरी से भुंडा महायज्ञ के सार्वजनिक #अनुष्ठान शुरू होंगे. इस दिन मेहमानों और देवताओं का स्वागत किया जाएगा. तीन जनवरी को देवता के मंदिर में शिखा पूजन मंदिर की छत पर पूजा-अर्चना के साथ होगी. चार जनवरी को मुख्य रस्म के तहत एक आदमी को जिसे बेडा के नाम से जाना जाता है उसे रस्सी से बांध कर खाई पार करवाई जाएगी. पांच जनवरी को देवताओं की विदाई का कार्यक्रम उच्छड़ पाछड़ रहेगा. भुंडा महायज्ञ 100 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.
#देवता महाराज #बकरालू के प्रति लाखों लोगों की आस्था
बता दें कि देवता #महाराज बकरालू के प्रति लाखों लोगों की आस्था हैं, जिसमें खासकर दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनाला गांव के लोग सीधे तौर पर देवता से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा रामपुर में रहने वाले कई लोगों की आस्था भी देवता महाराज बकरालू से जुड़ी हुई हैं. इससे पहले वर्ष 2005 में देवता साहिब बौंद्रा का भी भुंडा महायज्ञ हुआ था. देवता बौंद्रा के साथ भी इस महायज्ञ में 10 हजार श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है.
देवता बकरालू के मंदिर के नियम काफी सख्त हैं. मंदिर के गर्भगृह में पूजा के लिए सिर्फ पुजारी को ही जाने की अनुमति है. विशेष अवसर पर कन्या को ही मंदिर में जाने की अनुमति है. विशेष आयोजन में कारदार के अलावा देवता की अनुमति पर ही गांव के व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति मिलती है. चौदह साल से अधिक उम्र की कन्या और बाहर से ब्याह कर लाई गई महिला को भी मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है. देवता के मंदिर के बाहर आने पर ही लोग बकरालू महाराज के दर्शन कर सकते हैं.
39 साल बाद हो रहे यज्ञ में आएंगे पांच लाख लोग
देवता महाराज बकरालू के मोहतमीन (कारदार) रघुनाथ झामटा का कहना है कि, ‘1985 के बाद लोगों को भुंडा महायज्ञ करवाने का सौभाग्य मिल रहा है. ये चार दिन तक चलेगा. इस दौरान करीब पांच लाख लोगों के पहुंच सकते हैं. इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. सभी क्षेत्रवासी तैयारियों में जुटे हैं.
ये होता है भुंडा महायज्ञ
इतिहासकारों का कहना है कि भुंडा महायज्ञ की शुरूआत भगवान परशुराम ने की थी. कहा जाता है कि इस यज्ञ में परशुराम ने नरमुंडों की बलि दी थी. इसलिए इसे नरमेघ यज्ञ भी कहा जाता है. ये अनुष्ठान, पूर्ववर्ती बुशैहर रियासत के राजाओं की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. हिमाचल में कुल्लू के निरमंड, रामपुर बुशहर, रोहड़ू में इसे सदियों से मनाया जा रहा है. हालांकि, इसमें हर इतिहासकार का अपना-अपना मत भी हैं. पूर्व सीएम स्व. वीरभद्र सिंह ने भुंडा महायज्ञ को संरक्षण दिया था. लाखों लोगों की आस्था इस भुंडा महायज्ञ से जुड़ी है. यहां के लोगों की आस्था है कि भुंडा जैसे महायज्ञ के करवाने से जहां लोग बीमारियों से दूर रहते हैं, वहीं सेब की फसल भी काफी अच्छी होती है.
मैं खुद को समझ रहा हूं सौभाग्यशाली: देव शर्मा
देव खशकंडी गांव के रहने वाले देव शर्मा बताते हैं कि, ‘1985 में उनकी उम्र महज दो साल की थी. उस दौरान भुंडा महायज्ञ का आयोजन यहां हुआ था. आज मेरी उम्र 41 साल हो गई है और मुझे भुंडा यज्ञ देखने का मौका मिल रहा है और इसके लिए मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं. मेरा ये मनुष्य जन्म सफल हो गया, अगली बार न जाने कब इसका आयोजन हो.’