भारतीय किसान यूनियन
हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों के किसान दशकों से अपनी निजी ज़मीन खेत मे पॉपुलर और सफेदा जैसे पेड़ों की खेती करते हैं जिस पर हाल में हिमाचल सरकार ने कटाई और एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगा दी है। ऐसा अधिकारियों की समझ के अभाव में हुआ है जिनको जंगलात और खेती का फर्क तक नहीं पता। देवदार , चीड़ , शीशम , बान जैसी प्रजाति के पेड़ जो प्राकृतिक रूप से पैदा होते
हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों के किसान दशकों से अपनी निजी ज़मीन खेत मे पॉपुलर और सफेदा जैसे पेड़ों की खेती करते हैं जिस पर हाल में हिमाचल सरकार ने कटाई और एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगा दी है। ऐसा अधिकारियों की समझ के अभाव में हुआ है जिनको जंगलात और खेती का फर्क तक नहीं पता। देवदार , चीड़ , शीशम , बान जैसी प्रजाति के पेड़ जो प्राकृतिक रूप से पैदा होते हैं।
उनके निजी मिल्कियत से काटना सरकार की मर्जी के दायरे में आता था पर जिन प्रजाति के पेड़ किसान खुद लगाता और पालता है जिसका उपयोग प्लाई उद्योग में होता है। उसको सरकारी नियंत्रण में रखना गलत है ऐसा पूरे देश में कहीं नहीं होता क्यूंकि यह कैश क्रॉप की परिभाषा में आता है। वैसे भी पूरे हिमाचल में पॉपुलर पर आधारित कोई उद्योग ही नहीं है। इसलिए इसको पठानकोट , होशियारपुर या यमुनानगर जैसी मंडियों में ले जाया जाता है।
अगर सरकार इसका निर्यात रोकना चाहती है तो 1500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर इसकी सरकारी खरीद सुनिश्चित करे। हिमाचल सरकार जब मंडी मध्यस्थ योजना में सेब खरीद रही है और केंद्र सरकार गेहूं और धान खरीद रही है तो हिमाचल सरकार पॉपुलर सफेदा भी खरीदना शुरू करें वर्ना किसानों को कम से कम उनके हाल पर छोड़ दे। ऐसे तुगलकी फरमान जारी करने वाले अफसरों को सस्पेंड करें जिससे किसानों की समस्या का खुद पता नहीं है।
जिसके कारण किसानों का लाखों क्विंटल कटा माल खेतों में सड़ने को मजबूर है। भारतीय किसान यूनियन ( टिकट ) मुख्यमंत्री से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करती है। वरना किसान और भारतीय किसान यूनियन अपना अगला कदम उठाएगी और जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय किसान नेता हिमाचल आयेंगे और हम हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर कर सकते हैं।
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