*हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि दिहाड़ीदार (दैनिक वेतन भोगी) महिला को भी नियमित कर्मचारी की तरह मातृत्व अवकाश अवकाश लेने का हक है।*
*न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए तत्कालीन प्रशासनिक प्राधिकरण के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी।*
कोर्ट ने कहा कि मां बनना एक महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है। इसलिए एक महिला, जो नौकरी में है, को अपने बच्चे के जन्म की सुविधा के लिए जो भी आवश्यक हो, नियोक्ता को उसके प्रति विचारशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। उन शारीरिक कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए, जो एक कामकाजी महिला को बच्चे को गर्भ में या उसके जन्म के बाद बच्चे के लालन-पालन के दौरान सामना करना पड़ता है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिला और उसके बच्चे को पूर्ण और स्वस्थ रखरखाव प्रदान करके मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिलाओं, मातृत्व और बचपन को सामाजिक न्याय प्रदान करना है। मां व बच्चे दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी अग्रिम गर्भावस्था के समय एक दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी थी, उसे कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यह न केवल उसके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए बल्कि बाल स्वास्थ्य विकास और सुरक्षा के लिए भी हानिकारक होता। मातृत्व अवकाश प्रतिवादी का मौलिक मानवाधिकार है, जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता था। इसलिए, स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता को मातृत्व का लाभ न देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 39डी का उल्लंघन है। प्रदेश हाई कोर्ट ने दिहाड़ीदार महिला को मातृत्व अवकाश का लाभ न देने के फैसले को गैरकानूनी करार दिया। इसके साथ ही वर्ष 1996 के दौरान बच्चे के गर्भ में व उसके जन्म के बाद लालन-पालन के दौरान रही महिला की अनुपस्थिति को तीन महीने का मातृत्व अवकाश प्रदान करने के आदेश दिए, ताकि वह अवधि उसके समय पर नियमितीकरण में बाधा उत्पन्न न करे। (एचडीएम)
शानन पावर प्रोजेक्ट मामले की सुनवाई आठ सप्ताह टली
हिमाचल हाई कोर्ट ने माना केंद्र सरकार का आग्रह
सभी पक्षकारों को केस आपसी समझौते से निपटाने की छूट
विधि संवाददाता — शिमला
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के आग्रह पर शानन पावर प्रोजेक्ट का स्वामित्व हिमाचल सरकार को सौंपने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई आठ सप्ताह के लिए टाल दी है। कोर्ट ने इस दौरान सभी पक्षकारों को इस मामले को आपसी समझौते से निपटाने की छूट भी दी है। इस मामले में प्रदेश सरकार सहित पंजाब व हरियाणा की राज्य सरकारों सहित पंजाब स्टेट पावर कारपोरेशन लिमिटेड को भी पक्षकार बनाया गया है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश प्रार्थी लक्ष्मेंद्र सिंह द्वारा दायर याचिका पर दिए। याचिका में बताया गया है कि उक्त परियोजना प्रदेश के जिला मंडी में मौजूद है, जो हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में आती है। लेकिन 15 अगस्त, 1947 से नौ अप्रैल 1965 तक पंजाब ने बिना किसी औचित्य के उपर्युक्त परियोजना पर कब्जा कर लिया, जबकि उक्त परियोजना हिमाचल प्रदेश राज्य और इसकी आम जनता की है।
यह हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में है और इसे हिमाचल के पानी से चलाया जा रहा है। प्रार्थी ने आरोप लगाया है कि वर्ष 1965 और 1975 में हुए समझौतों के तहत हिमाचल सरकार और इसकी जनता के हितों पर ध्यान नहीं दिया गया। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि हिमाचल एक छोटा राज्य है, जिसके पास सीमित आय के स्रोत हैं और उक्त परियोजना की आय प्रति वर्ष 100 करोड़ से अधिक है। यदि उक्त परियोजना हिमाचल सरकार को सौंप दी जाती है, तो प्रदेश की आम जनता के साथ साथ राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को मंडी शहर की आम जनता को मुफ्त बिजली प्रदान करने और उक्त परियोजना की पूरी आय का भुगतान प्रदेश सरकार को करने के लिए निर्देशित करने की मांग की है। मामले पर सुनवाई 13 सितंबर को होगी।