61 वन गुज्जर परिवारों ने SDM को दिया ज्ञापन

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पाँवटा साहिब की अजोली पंचायत में पिछले करीबन 9 दशकों से बसे, जम्मुखाला और छल्लूवाला क्षेत्र के 61 परिवारो ने आज वन अधिकार कानून 2006 के तहत अपने व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार के दावे उप-मंडल स्तरीय समिति अध्यक्ष, उपमंडल अधिकारी, श्री गुंजित सिंह चीमा, पोंटा साहिब को सौंपे। वन अधिकार कानून, 2006 केंद्र सरकार द्वारा पारित एक ऐसा कानून है जो अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी, जो 13 दिसम्बर 2005 से पहले वन भूमि को उपयोग में ले रहे हैं, के व्यक्तिगत, सामुदायिक एवं सामूहिक वन संसाधन के प्रबंधन के अधिकार सुनिश्चित करता है.

ये सभी वन गुज्जर परिवार, मुख्य रूप से एक घुमंतू पशुपालक व अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आने वाले, गर्मियों के दौरान 6 महीने तक अपने मवेशियों को चराने के लिए उपरी धारों पर रहते थे और सर्दियों के दौरान पांवटा साहिब में अपने डेरों में चले जाते थे। 70 के दशक में वन्य जीव अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान बनाये जा रहे थे। उस समय, वन विभाग ने उन्हें जमीन देने के आश्वासन के बदले में सिरमौर जिले के चूड़धार क्षेत्र से चराई और शिविर परमिट देना बंद कर दिया था, जो कि पांवटा साहिब में बसे कई परिवारों के लिए हुआ था।

मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी सिरमौर के अध्यक्ष कैप्टेन सलीम बताते हैं कि “आज तक सरकार द्वारा इन्हें बसाया नहीं गया जिसके कारण ये लोग आजतक भूमि हीन है और राजस्व दस्तावेजों में कोई भी रिकॉर्ड न होने के कारण इनको अनुसूचित जनजाति और हिमाचली बोनाफाइड सर्टिफिकेट बनाने में दिक्कत आती है. साथ ही बैंक से इन्हे लोन एवम अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता । यहां तक की यह लोग झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर है और पक्के मकान बनाने से वन विभाग मनाही करता है.”

ग्राम पंचायत अजौली के उपप्रधान वज़ीर ने कहा कि “हमारे गांव वन भूमि में बसे होने के कारण आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। इन्ही कारणों से हमने वन अधिकार कानून 2006, जिसमे ये प्रावधान है कि ऐसे असर्वेक्षित गांव जो वनों में बसे है उनको राजस्व गांव में बदला जा सकता है के तहत दावे किए हैं.”

वन अधिकार समिति के सचिव गामी ने कहा कि “वन अधिकार कानून की प्रक्रिया को पूरा करने में 2 साल से अधिक समय लगा और साथ ही काफी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. आखिरकार आज हम अपने 61 दावे उपमंडल अधिकारी पोंटा साहिब को सौंपने जा रहे हैं जिनसे हम आशा करते हैं कि वे हमें कानून के तहत हमारे वन अधिकार के पट्टे जल्द से जल्द दें.”