मन चंगा तो कटौती में गंगा — रविदास जी

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दूरदर्शी, तर्कशील, दयालु सतगुरु रविदास महाराज

शक्तिशाली, अहंकारी, वर्णव्यवस्था के धारणी राजाओं को भी सतगुरु रविदास महाराज जी के चरणों में नतमस्तक होकर अपने आप में बदलाव लाकर गुरुजी की विचारधारा को आगे

बढ़ाने का प्रण लेना पड़ा।

सतगुरु रविदास महाराज जी हर रोज सुबह सूर्य उदय होने से चार घंटे पहले उठकर परमात्मा का ध्यान करते, उसके बाद सुबह से लेकर शाम तक कार्य करते, जिससे वह अपने घर-परिवार की रोजी-रोटी चलाते थे।

शाम के समय वह हर रोज कुछ समय परमपिता परमात्मा की स्तुति

में शब्द-कीर्तन, गीत गाते. और उसके बाद अपने साथियों, अपने उपासकों और आस-पड़ोस के लोगों के साथ विचार चर्चा तथा सामाजिक बुराइयों के खिलाफ प्रचार-

प्रसार करते।

गुरु रविदास जी के समय में मुख्य रूप में सामाजिक बुराइयों, ऊंच-नीच, भेदभाव, अनपढ़ता, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा से भेदभाव, दाज-दहेज, बली प्रथा आदि का बोलबाला था।

इन सभी बुराइयों के खिलाफ सतगुरु रविदास महाराज जी ने प्रचंड लहर चलाई, जिसके परिणामस्वरूप

आप के नाम की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई, जिसके चलते देश के हर कोने से दबे-कुचले गरीब लोग उनकी विचारधारा के साथ जुड़ गए और के जी नेतृत्व जीतने के अत्याचार

ऐसे महापुरुष सतगुरु रविदास महाराज जी भारत की धार्मिक संस्कृति के ऐसे महान रहबर हुए, जिनके गुरु रामानंद और उनकी शिष्य मीरा बाई का दुनिया में नाम हुआ।

श्री गुरु रविदास महाराज जी पर्यावरण संबंधी इतने सचेत थे कि वह जहां शिकारियों को जानवरों को मारने से रोकते, वहीं पेड़-पौधों व जंगलातों की बेतहाशा कटाई करने वाले लक्कड़हारों को भी ऐसा करने से रोकते थे।

ऐसे दूरदर्शी, तर्कशील, दयालु, बेमिसाल हौसले के मालिक सतगुरु रविदास महाराज जी के 648वें जन्मोत्सव के संबंध में पूरे विश्व में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

• सतगुरु रविदास महाराज जी के जीवन से मार्गदर्शन लेते हुए उनकी विचारधारा पर पहरा देते हुए समय की सबसे अधिक जरूरत है कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ व्यावहारिक रूप से और पर्यावरण की देखरेख के लिए योजनाबद्ध ढंग

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