गाय माता को पहला निवाला देकर कमाए पुण्य

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सनातन धर्म में गाय को लक्ष्मी स्वरुप भी माना गया है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि गाय की सेवा करने से घर-परिवार सुखी संपन्न रहता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार जिस घर में गाय की सेवा निःस्वार्थ भाव से की जाती है उस घर में सदैव लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इतना ही नहीं जिस घर में गाय की सेवा होती है, वहां अचानक किसी भी प्रकार की विघ्न-बाधाएं नहीं पनप पाती हैं।शहरी परिवेश के कारण गाय को पालना तो संभव नहीं होता है लेकिन गाय को पहला निवाला देने व पहली रोटी देना भी कहीं ना कहीं भूलता जा रहा है, जबकि गांव में अभी भी अनेकों क्षेत्रों में गाय को पहला निवाला और पहली रोटी गाय को देना नहीं भूलते हैं,और गाय को पहली रोटी खिलाई जाती है,जिसको सनातन धर्म के अनुसार बहुत ज्यादा पुण्य कार्य माना जाता है,शास्त्रीय मान्यता अनुसार शहरों में भी कुछेक क्षेत्रों में गाय को रोटी खिलाई जाती है। लेकिन आजकल गाय को रोटी खिलाने का प्रचलन बदल गया है। बदलते प्रचलन में कई बार बड़ी भूल हो जाती है जो कि बेहद अशुभ है। वर्तमान में खासकर युवाओं में गौमाता के प्रति वह आस्था विश्वास और भोजन के समय पहला निवाला गौमाता के निमित्त रखने का जैसे नियम ही बन्द हो गया हो ,जो कि बहुत ही दुखद और चिंतनीय विषय है, जबकि पूर्व के दशकों में भोजन के दौरान सर्वप्रथम भोजन मंत्र का उच्चारण किया जाता था तत्पश्चात ही भोजन को ग्रहण किया जाता था, जो भोजन मंत्र का नित्य कर्म बहुत कम घरों में देखने को मिलता है,आज हम सभी युवाओं का सनातन धर्म में सर्वप्रथम कर्तव्य व धर्म बनता है कि हम प्रतिदिन सुबह-शाम गौमाता के निमित्त पहला निवाला जरूर अर्पित करें और अपने आने वाली पीढ़ी को भी इस पुण्य और नैतिक कर्तव्य से जागरूक करने का प्रयास करें, जैसे कहां भी जाता है कि गौमाता में तेंतीस हजार देवी देवताओं का वास बताया गया है तो हम सभी युवाओं को गांव से लेकर शहरों तक इस पुनीत कार्य को करने को अपना नित्य कर्म बनाने की परम् आवश्यकता है, तभी शायद हम असली सनातनी हिन्दू धर्म के अनुयाई भी मानें जाएंगे, अन्यथा आधुनिकता के इस दौर में आजकल के युवाओं में इस प्रकार के कर्म बहुत कम देखने को मिलते हैं, और जहां भी इस प्रकार के पुण्य कार्य किए जाते हैं वहां निसंदेह उस घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है, क्योंकि गौमाता कि सेवा करने से अनेकों पुण्य का फल प्राप्त हो जाता है, ऐसी मान्यता एवं इतिहास दोहराया जाता है ,आज हम सभी युवाओं का धर्म बनता है कि हम गौवंश को सड़कों पर बेसहारा ना छोड़कर उन्हें आश्रय देने का प्रयास करें ताकि वह दर दर सड़कों पर भटकने के लिए विवश न हो क्योंकि हमें आए दिन अनेकों गौवंश सड़कों एवं अनेकों क्षेत्रों में असहाय अवस्था में देखने को मिलती हैं, जो कि बहुत ही शर्मनाक विषय है,जिस गौमाता से हमने दूध,दही,घी,गोबर, इत्यादि अनेकों प्रकार के लाभ प्राप्त करने के उपरान्त उनको इस दुर्दशा पर छोड़ दिया है।
इसलिए आज हम सभी युवाओं को अपने जीवन में नित्य प्रति एक नियम बनाना चाहिए ताकि हम प्रतिदिन गौमाता को पहला निवाला और पहली रोटी गौमाता के नाम से अर्जित करे तथा जिस भी क्षेत्र में हम रहते हैं वहां अगर गाय नहीं मिलती हैं तो हम अपने निकटतम एवं गौशाला तक इस नित्य कर्म को पहुंचाने का प्रयास करें ताकि आप घर बैठे भी इस पुनीत कार्य को ताउम्र बनाएं रखें,जिसकी शुरुआत शास्त्रानुसार सदियों एवं शायद युगों युगों से चली आ रही है, इसलिए इस सन्देश और मुहिम को हमें अपने घरों एवं अपने आप से शुरू करनी होगी, तो वहीं जिन क्षेत्रों में यह नित्य नियम लुप्त हो चलें है उन तमाम सनातनी को इस प्रकार की शुरुआत और जागरूकता लाने की परम् आवश्यकता है, देव भूमि हिमाचल जैसे अनेकों क्षेत्रों में आज इस नित्य कर्म और गौमाता के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा को हम सभी को बनाएं रखना चाहिए जिस प्रदेश में हम रहते हैं वहां देवी देवताओं का वास रहता है,जिस देव भूमि में व देश में गाय को गौमाता कहां जाता है तो वहीं हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों में गौमाता के उत्थान और सुरक्षा के लिए हम सभी हिमाचल वासी को कुछ ना कुछ सहयोग और नित्य कर्म करने की परम् आवश्यकता है ताकि भविष्य में युवा इस नियम पर चलकर पुण्य के भागी बन सकें ऐसी उम्मीद और विश्वास करते हैं।
मान्यता अनुसार नवग्रहों की शांति के लिए भी गाय कि विशेष भूमिका होती है। मंगल के अरिष्ट होने पर लाल रंग की गाय की सेवा और गरीब ब्राह्मण को गोदान ख़राब मंगल के प्रभाव को क्षीण कर देता है। इसी तरह शनि की दशा, अन्तर्दशा और साढ़ेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्यों को कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
बुध ग्रह की अशुभता के निवारण हेतु गायों को हरा चारा खिलाने से राहत मिलती है
पितृदोष होने पर गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाना चाहिए। गाय की सेवा पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर भक्तों को मानसिक शांति और सुखमय जीवन होने का वरदान देती हैं।इस प्रकार गाय की सेवा से अनेकों पुण्य के भागी बन जाते हैं हम अगर गौमाता के प्रति सेवा भाव और इस प्रकार के नित्य कर्म करने का प्रयास करते है तो, वहीं हमें अपने बच्चों के अन्दर भी इस प्रकार के विशेष गुण और जागरूकता लाने की परम् आवश्यकता है।
*स्वतन्त्र लेखक-हेमराज राणा सिरमौर*