डब्बे में चने बेच बेटे को PGI में बनाया डॉक्टर, दूसरे को सरकारी अफसर और बेटी को बनाया स्टाफनर्स

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शिमला में डब्बे में चने बेच बेटे को PGI में बनाया डॉक्टर, दूसरे को सरकारी अफसर और बेटी को बनाया स्टाफनर्स

शिमलाः वो चने वाला है मगर किस्मत की चाबी रखता है, ना दुकान, ना बोर्ड फिर भी हर कोई जानता है उसे, शिमला के रिज पर एक पेड़ के नीचे, वो बैठा है पिछले 48 सालों से, तेजी से घूमते हुए वक्त के पहिए को गुजरते हुए चुपचाप देखता है। शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान से लक्कड़ बाजार की तरफ जाते समय एक बड़ा सा छायादार पेड़ है, जिसे लोग “वेटिंग है और रत्न लाल खुद कोई आम ट्री” के नाम से जानते हैं। कोई उस दुकानदार नहीं, शिमलाकी एक जिंदा पेड़ के नीचे दोस्तों से मिलता है, कोई पहचान हैं। रत्न लाल ने कभी अपने सेल्फी लेता है, कोई वक्त काटता है, काम को छोटा नहीं समझा ना लेकिन उसी पेड़ के नीचे, 48 सालों किस्मत से कोई शिकवा किया, बस से हर दिन एक शख्स बैठता है, मेहनत को साथी बनाया और हर दिन जिसका नाम रत्न लाल है। रत्न लाल को जिंदादिली के साथ बिना किसी के लिए ये उनकी कर्मस्थली है. इसी शिकवे शिकायत के जिया। रत्न लाल पेड़ के नीचे बैठ कर रत्न लाल ने इस शहर को बदलते देखा है, शिमला में 48 से ज्यादा बसंत देखे शिमला की रफ्तार को महसूस किया हैं। 68 साल के रत्न लाल 1976 से है। रत्न लाल कहते हैं, ‘जिस बच्चे ने रोजाना सुबह 11 बजे से रात 9 बजे मुझसे 5 पैसे के चने लिए थे, आज तक, रत्न लाल इसी पेड़ के नीचे वो अपने पोते को मेरे पास चने अपने डिब्बे में मसालेदार चने, खरीदने के लिए लाता है। मैंने प्रदेश मूंगफली और चिप्स के साथ बैठते के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह हैं। उनकी दुकान नहीं, एक ठिकाना परमार से लेकर आज की सुखविंदर

सिंह सुक्खू सरकार तक का है। शुरू में चने की पुड़िया 5 लेकर एक रुपये तक में लेकिन आज ये 30 रुपये में हूं।’ रत्न लाल की आंखों ने चलते देखा है। मूलतः रहने वाले रत्न लाल अब गांव चले जाते हैं, जहां वो भी करते हैं, लेकिन जैसे ही अप्रैल में नरम पड़ता है, वो उसी पेड़ की छांव में बैठ जहां उनके चाहने वाले, पुराने और नए सैलानी उनका हैं। रत्न लाल बताते हैं कि ‘ फिल्म 3 इडियट्स के एक शिमला के मशहूर रिज मैदान

दिखाया गया है, जहां एक चने बेचने वाले व्यक्ति का छोटा सा किरदार है। इस सीन में जो चने वाला बॉक्स इस्तेमाल हुआ था, वो असल में मेरा था। फिल्म यूनिट ने ये बॉक्स मुझसे से किराए पर लिया था, ताकि सीन को अधिक वास्तविक औरस्थानीय रंग दिया जा सके। ‘रत्न लाल का नाम शिमला में हर कोई जानता है। स्थानीय लोग तो उन्हें जाने ही हैं, लेकिन पर्यटक भी उन्हें जानते हैं। घुड़सवारी और उनके मसालेदार चने दौर देखा खाए बिना रिज की सैर अधूरी लगती पैसे से है। रत्न लाल कहते हैं कि ‘चने बेच बिकती थी, कर ही मैंने बच्चों को पढ़ाया बेचता लिखाया। बच्चों ने पढ़ लिखकर मेरा वक्त को मान बढ़ाया। एक बेटा पीजीआई में बिलासपुर के बड़ा डॉक्टर, दूसरा ड्रग इंस्पेक्टर और सर्दियों में बेटी स्टाफ नर्स बनीं। सब की शादियां खेतीबाड़ी हो चुकी हैं, सब सेटल हैं। फिर भी मैं मौसम अपनी डब्बे वाली दुकान पर हर रोज़ वापस बैठता हूं। ये सब इस चने के छोटे से जाते हैं, डब्बे का कमाल है। बच्चों की पढ़ाई ग्राहक लिखाई भी शिमला से हुई है.’ रत्न इंतजार करते लाल मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘बच्चे बॉलीवुड बोलते हैं अब काम मत करो, आराम सीन में करो पर मैं कैसे छोडूं वो काम, को जिसने मुझे पहचान दी?”