वर्तमान समय में अधिकांश क्षेत्रों में लोगों का अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने को लेकर निजी स्कूलों की और ज्यादा झुकाव देखने को मिलता है, जिसमें हर क्षेत्र के लोगों का अलग-अलग मत और विचार देखने व सुनने को मिलते हैं, तो वहीं क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों में शिक्षक पर्याप्त नहीं होते हैं तो कहीं जगह शिक्षा का वातावरण अनुकूल नहीं मिल पाता है,इन तमाम कारणों की वज़ह से आज के परिप्रेक्ष्य में गांव से मीलों दूर शहरों में निजी स्कूलों की और अभिभावक अपने बच्चों को मजबूरी में भी भेज रहे हैं,परन्तु वर्तमान में अनेकों निजी स्कूलों की मनमानियों और हर वर्ष फिस बढ़ोतरी इत्यादि अनेकों फैसले आम आदमी और गरीब व्यक्ति के लिए एक बड़ी समस्या आज उत्पन्न हो रही है, जबकि आज हर अभिभावक चाहता है कि मैं अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलवा सकूं जिसके लिए बैशक उनको अनेकों प्रकार का संघर्ष भी करना पड़े, तो इसी परिप्रेक्ष्य में निजी स्कूलों में दाखिला भी करवाते हैं परन्तु निजी स्कूलों के इन अजीबोगरीब फरमानों से मानों गरीब व्यक्ति को अमल कर पाना मुश्किल होता जा रहा है,और भविष्य में यह एक गंभीर समस्या व चुनौती भी आने वाले समय में बनती जाएगी, तो वहीं अनेकों निजी स्कूलों ने अब मानों जैसे शिक्षा का व्यापारीकरण कर दिया हो,क्योंकि निजी स्कूल इस बात को लेकर आशान्वित हैं कि सरकारी स्कूलों या फिर शुरूआती दौर में ही बड़े स्तर पर उन तमाम स्कूलों के निजी स्कूलों में आने को मानों जेसे हौड सी लग गई हो, तो वहीं निजी स्कूलों ने भी बिना किसी डर और सरकार के कोई ख़ास मापदंडों को पूरा ना करके शिक्षा के नाम पर अनेकों प्रकार के फैसले उन तमाम अभिभावकों पर थौप दिए हैं जिनको आम आदमी और गरीब व्यक्ति ना चाहा कर भी मजबूरी में इस समस्या से आए दिन दो चार होने को मजबूर हैं, जिसमें जैसे हर वर्ष बच्चों की फिस में मनमानी तरीके से बढ़ोतरी कर रहे हैं, तो वहीं हर वर्ष स्कूल ड्रेस को बदल रहे हैं जो किसी भी तर्क से उचित नहीं है,तो वहीं हर वर्ष हरेक बच्चों से एडमिशन फिस लेकर मोटी फीस वसूल करना, तो वहीं किताबों और ड्रेस को भी स्कूल से ही मुहैया करवाना जो कि अन्य दुकानों से अधिक महंगी प्राप्त होती है, जिस समस्या से हिमाचल प्रदेश भी अछूता नहीं है, हिमाचल प्रदेश के विभिन्न निजी स्कूलों में आएं दिन इस प्रकार की खबरें समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर बड़े स्तर पर प्रकाशित होती रहती है, परन्तु फिर भी इसका असर इन स्कूलों में मानों कुछ खास पड़ता ही नहीं ये एक गंभीर विषय है, तो वहीं क्षेत्र समाज को भी इस गंभीर विषय पर जाग्रत होने की परम् आवश्यकता है, और इन स्कूलों के मनमाने फैसलों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को भी कुछ ना कुछ कठोर नियम लागू करने चाहिए, ताकि निजी स्कूल भविष्य में इस प्रकार की लूट-खसोट ना कर सके, और आम जनता और गरीब व्यक्ति को भविष्य में आर्थिक रूप से इन सभी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े। तो वहीं सरकारी स्कूलों में अगर सरकार बेहतर संसाधन,पर्याप्त शिक्षक ,वातानुकूलित शिक्षा का माहौल,आधुनिक यंत्रों से सुसज्जित सरकारी स्कूलों में सुविधाएं इत्यादि अगर उपलब्ध हो जाती है तो वह दिन दूर नहीं जब सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से हर क्षैत्र में आगे रहेंगे, और हर अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए सरकारी स्कूलों की और रुख़ अख्तियार भी करेंगे,बस अगर कोई जरूरत है तो वह है समय-समय पर प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार स्कूलों की दिशा व दशा को बदलने के लिए बेहतर प्रयास करती रहे, क्योंकि सरकारी स्कूलों में बच्चों को हर सुविधा के साथ साथ अभिभावकों पर आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ता है बल्कि होनहार छात्रों और पिछड़ा वर्ग, और गरीब बच्चों को हर वर्ष सरकार की और से छात्रवृत्ति इत्यादि अनेकों योजनाएं समय-समय पर चली आ रही है,इस बात को भी हमें समझना पड़ेगा,सरकारी स्कूलों से हमेशा अच्छे परिणाम आते रहे हैं तो वहीं अगर भविष्य में रोजगार और अपने पांव पर खड़े होकर आत्मनिर्भरता की बात करें तो भी सबसे आगे सरकारी स्कूलों के छात्र ही हमेशा रहें हैं, इस बात को इतिहास और पुख्ता करता है,तो वहीं सरकारी स्कूलों में पढ़ें अनेकों होनहार छात्रों ने प्रदेश व देश का नाम विश्व पटल पर गौरवान्वित भी करवाया है,जिससे सिद्ध हो जाता है कि समय के साथ साथ आज निजी स्कूलों में मात्र दिखावा ज्यादा और हकीकत कुछ और है,अर्थार्त सरकारी स्कूलों में अगर शिक्षक पर्याप्त है तो आज भी सरकारी स्कूलों के मुकाबले कोई और हो ही नहीं सकता, तो एक बात और भी सिद्ध करतीं हैं कि हिमाचल प्रदेश में अनेकों क्षेत्रों से पूर्व में शिक्षक रहे जिन्होंने अधिकांश सरकारी स्कूलों में ही शिक्षा ग्रहण की उन तमाम शिक्षको ने आज के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न विभागों और प्रशासनिक अधिकारी तक का सफर तय किया है,और आज देश व प्रदेश का नाम गौरवान्वित कर रहे हैं, तो इस बात पर भी हम सभी को समझना और चिन्तन करना पड़ेगा,आखिर अधिकाशं क्षेत्रों में गाव से लेकर शहरों तक के बच्चे निजी स्कूलों की और क्यों इतना पलायन हो रहा है, जबकि सरकारी स्कूलों में हरेक शिक्षक प्रशिक्षत और निपुण होता है, जो उच्च शिक्षा के साथ साथ हर प्रतियोगी परीक्षाओं और कमीशन पास करके अपनी काबिलियत का लौहा मनवाता आ रहा है, जबकि निजी स्कूलों में इतने बहुप्रतिभा के धनी शिक्षक नहीं मिल पाते और वहां स्कूलों में कम शिक्षा और ट्यूशन पढ़ाने के लिए ज्यादा प्रेरित करते हैं,यह भी एक बड़ी विडंबना समय-समय पर देखने को मिलती हैं, इसलिए आज हम सभी को कही ना कही अपनी मानसिकता को बदलने की भी परम आवश्यकता है, कि निजी स्कूलों के चकाचौंध भरी दुनिया से बहार निकलने की आवश्यकता है, तो वहीं आर्थिक रूप से कमजोर होता आम आदमी और गरीब व्यक्ति की पीड़ा वहीं समझ सकता है जो इसका निर्वहन कर रहा है। परन्तु अगर भविष्य में सरकार और प्रशासन इन तमाम निजी स्कूलों पर किसी ना किसी रूप से लगाम लगातीं है तो निसंदेह आम आदमी और गरीब व्यक्ति को बहुत बड़ी राहत मिल सकती है।
*स्वतन्त्र लेखक-हेमराज राणा सिरमौर*